जब भी मैं अपने को भाया हूँ
तेरी ही याद मुझे आई है।
जब जब भी दर्पण में
अपना प्रतिबिंब मुझे भला लगा
मेरी रोमांच भरी आंखों में
तेरा प्रतिबिंब जगा
जब जब मैं सुख पर ललचाया हूँ
तेरी ही याद मुझे आई है।
जब कोई गीत नया जन्मा है अंधेरों पर
जाने क्यों याद मुझे आया तब
तेरा स्वर
जब जब मैं चांद चुरा लाया हूँ
तेरी ही याद मुझे आई है।
साक्षी है तू
मेरी सृजन विकल रातों की
दृढ़ता है तू मेरे रचनारत हाथों की
जब जब मैं काल जीत आया हूँ
तेरी ही याद मुझे आई है
जब जब मैं अपने को भाया हूँ।