प्रभंजन लौट आता है
प्रतीक्षा तक, हार-हार, बार-बार
सागर
लहरों की उपासना का
अनवरत उत्सव है
तट तटस्थ रहे
उत्साह तुम्हारा.
प्रभंजन लौट आता है
प्रतीक्षा तक, हार-हार, बार-बार
सागर
लहरों की उपासना का
अनवरत उत्सव है
तट तटस्थ रहे
उत्साह तुम्हारा.