Last modified on 18 दिसम्बर 2011, at 14:13

सागर के सीप (कविता) / भारत भूषण

ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हूँ ।
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ ।

है दर्द-कीट ने
युग-युग इन्हें बनाया
आँसू के
खारी पानी से नहलाया

जब रह न सके ये मौन,
स्वयं तिर आए
भव तट पर
काल तरंगों ने बिखराए

है आँख किसी की खुली
किसी की सोती
खोजो,
पा ही जाओगे कोई मोती

ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हूँ
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ