नयनों ने मन के द्वारे पर
स्वप्न सजाए हैं
सागर चिंतित हुआ देखकर
सूखी हुई नदी
किंकर्तव्यविमूढ़ बन रही
फिर भी आज सदी
अम्मा ने उलझे प्रश्नों के
हल बतलाए हैं
कोरे काग़ज़ का सदियों से
यह इतिहास रहा
मौन साधकर सदा लेखनी
का ही दास रहा
मुनिया ने कुछ रंग-बिरंगे
चित्र बनाए हैं
निराकार मन की होती ज्यों
कोई थाह नहीं
अन्तहीन नभ में वैसे ही
निश्चित राह नहीं
नन्हीं चिड़िया ने उड़ने को
पर फैलाए हैं ।