आसमान है और
सतह सागर की जैसे
खुले हुए ऊपर-नीचे के होंठ,
पर्वत जैसे
कुछ उज्ज्वल, कुछ हरियाले,
धूमिल-सँवलाये दाँत।
तट पर जीवन ऐसा जैसे
लपलप करती
और कतरनी जैसी चलती
चपल-चतुर-सी जीभ,
शब्दों में रचती ध्वनियों को।
रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003
आसमान है और
सतह सागर की जैसे
खुले हुए ऊपर-नीचे के होंठ,
पर्वत जैसे
कुछ उज्ज्वल, कुछ हरियाले,
धूमिल-सँवलाये दाँत।
तट पर जीवन ऐसा जैसे
लपलप करती
और कतरनी जैसी चलती
चपल-चतुर-सी जीभ,
शब्दों में रचती ध्वनियों को।
रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003