सागर था वह
आकर मुझमें, चला गया जो
मुझे डुबाकर और
भुलाकर चला गया जो,
फिर न लौट आने के खातिर,
अंत समय तक टेर-टेरकर मरुथल में ही
रह जाने के खातिर,
फिर न गीत गाने के खातिर
रचनाकाल: ०४-०२-१९६१
सागर था वह
आकर मुझमें, चला गया जो
मुझे डुबाकर और
भुलाकर चला गया जो,
फिर न लौट आने के खातिर,
अंत समय तक टेर-टेरकर मरुथल में ही
रह जाने के खातिर,
फिर न गीत गाने के खातिर
रचनाकाल: ०४-०२-१९६१