Last modified on 1 सितम्बर 2013, at 17:37

साथी / निलिम कुमार

कहाँ जा रहे हो
कँधे पर मरी चिडिय़ाँ टाँगकर
कहाँ ले जा रहे हो ?

मैं माँ के पास जा रहा हूँ
बारिश में चिड़ियाँ मर गईं
ज़िन्दा करने जा रहा हूँ

कहाँ रहती है तुम्हारी माँ ?

वह जो गिद्ध की तरह बैठा है पर्वत-शिखर
उसके पार
हवा के घरौंदे और मेघों के झुण्ड को छोड़
आकाश के तारे
मरघट के गीत
और सिसकियों को पारकर
मिलता है एक सुरमई पोखर
वहीं --
एक कमलिनी पर बैठी है मेरी माँ

पहाड़ कैसे पार करोगे तुम ?
हवा में दबकर मर जाओगे
मेघ तुम्हें दफ़ना देंगे
और तारे जला देंगे

मैं एक गीत बनकर जाऊँगा
पत्थरों के बीच से
पेड़-पौधों के पत्तों में कम्पन पैदा करते हुए

क्या मुझे भी साथ ले चलोगे ?
मैं भी तुम्हारी माँ को माँ कहूँगी
तुम्हारे गीत सुनते हुए अपने केश लहराऊँगी
बाहें पसारकर हृदय खोल दूँगी

तुम्हें साथ ले जाऊँगा तो माँ नाराज़ होगी
क्योंकि मेरी जाति ही है... निस्संग

फिर मैं एक चिडिय़ा बन जाऊँगी
बारिश मुझे मार देगी
मैं मरी हुई चिडिय़ा --
तुम्हारे कंधों पर चढ़कर जाऊँगी

मूल असमिया से अनुवाद : पापोरी गोस्वामी