भूलो मत
मित्र
चलते हैं हम साथ-साथ
चढ़ते हैं पहाड़ों पर
चुनते हैं रसभरी
ले जाने दो हमें
चारों हवाओं से
भूलो मत
यह है हमारा
समवेत संसार
अविभाजित
ओह, विभाजित
जो हमें बनाती है
जो हमें बर्बाद करती है
वह खण्डित
अखण्डित धरा
जिस पर हम
चलते हैं साथ-साथ II
मूल जर्मन भाषा से प्रतिभा उपाध्याय द्वारा अनूदित