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साथ- 1 / नवनीत शर्मा


हालांकि अब इससे कोई अंतर नहीं पड़ता
फिर भी....
बैंक की तंद्रा तोड़ने में असफल रहती
बूढ़ी लाठियों
मोटे चश्‍मों
इंटरव्यू देने आई
जवान आंखो
सुसाइड नोट के अक्षरों से झांकते
दो नाजुक पीले हाथो
खाली हवेली के पहरे का शगल निभाते
तन्‍हा रोशनदानों
धूल से पटी जरूरी अर्जियो
छत से मीलों दूर
सरहद पर झांकते सपनों
मैं तुम सबके साथ हूं।