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साथ / रचना दीक्षित

बहुत दिनों बाद
बगीचे की सैर को पहुँची
मुझे देख
वहाँ के दरख़्त, पेड़, झाड़ियाँ
और यहाँ तक कि टूटे पत्ते भी
मुस्कुराये, खिलखिलाए, तालियाँ बजाईं
ठंडी हवा खिलखिलाई, खुशबू महकाई
तारो ताजा हो उठी मैं,
फिर उठी और चल पड़ी
तभी बुजुर्ग दरख़्त की
एक डाली लटकी, लचकी और
मेरे पास आई
और कानों में बोली
कभी आ जाया करो यहाँ भी
अच्छा लगता है