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साथ उनके उजाले गये / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’

साथ उनके उजाले गये
ग़म अँधेरों में पाले गये

हक़ जो माँगा किसी ने कभी
उसपे पत्थर उछाले गये

इल्म तो साथ मेरे रहा
चोर, फिर क्या उठा ले गये

थी रक़ीबों की बारादरी
बज़्म से हम निकाले गये

आप सच बोलकर दफ़अतन
साख अपनी बचा ले गये