Last modified on 28 फ़रवरी 2020, at 22:34

साथ नहीं दे पाऊँगा / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

घनघोर निराश वाले वह दिन।
स्वतन्त्र उड रहे पंछी-सा और नहीं उड पाऊँगा।
असीम वेदना सहे अभी तक, और नहीं सह पाऊँगा।
मत देखो राहें रुक कर मेरे आने की,
मैं हार चुका हूँ जीवन से, साथ नहीं दे पाऊँगा।
टूट चुके हैं सारे सपने,
लौट चुके हैं जो थे अपने।
ढूंढ रहा हूँ खुद को खोकर,
शायद ही मिल पाऊँगा।
मै हार चुका हूँ जीवन से, साथ नहीं दे पाऊँगा।
आशाओं के तट पर टूटी नांव लिये बैठा हूँ।
हालातों से लडता मांझी हूँ, पतवार लिये बैठा हूँ।
इन लहरों के प्रकोप को और नहीं सह पाऊँगा।
मै हार चुका हूँ जीवन से, साथ नहीं दे पाऊँगा।