भूमि सो पवित्र होत साधु के प्रसाद पाय, साधु के तो अंग अंग तीरथो तरात है।
साधुके सनेहते हुताश को प्रकाश होत, साधुकी सृदृष्टि पौन-सृष्टिको सोहात है॥
आसमान आश थिर साधु के तमाशगीर, हो रहो मगन ताते नाहि विनशात है।
धरनी कहत सो वुझत कोइ कोइ भाई, साधु जो दृढ़ाई वात सोइ वात वात है॥23॥