कितने मान से सहेज कर रखा है तुमने बड़ी झील
पीर शाह अली शाह का तकिया
लहरें भी उस माटी को
इज़्ज़त से छूती हैं
धन्यवाद कहता हूँ
उन परिन्दों को
तकिए के पास के पेड़ों पर जिनका बसेरा है
और वे जब-तब रोचक जल-गीत
गाती रहती हैं
साधुवाद !
उस टापू की हरियाली को
हरहमेश जो इंसानियत को दुआ देती रहती है