मोह भया विषया जल बूडत, साधु भले गहि बाँह बचाया।
दीन सरूप अनूप बनाय के, लाय के पारस भेद बताया॥
छूटि गई मनकी दुविधा, धरनी निर्भव अनुभव पद गाया।
पाँच भये वश साँच सुनो, सब साधु भये सब साधुकि दया॥23॥
मोह भया विषया जल बूडत, साधु भले गहि बाँह बचाया।
दीन सरूप अनूप बनाय के, लाय के पारस भेद बताया॥
छूटि गई मनकी दुविधा, धरनी निर्भव अनुभव पद गाया।
पाँच भये वश साँच सुनो, सब साधु भये सब साधुकि दया॥23॥