साधौ जो पकरी सो पकरी।
अबतो टेक गही सुमिरन की, ज्यों हारिल की लकरी॥
ज्यों सूरा ने सस्तर लीन्हों, ज्यों बनिए ने तखरी।
ज्यों सतवंती लियो सिंधौरा, तार गह्यो ज्यों मकरी॥
ज्यों कामी को तिरिया प्यारी, ज्यों किरपिन कूं दमरी।
ऐसे हमकूं राम पियारे, ज्यों बालक कूं ममरी॥
ज्यों दीपक कूं तेल पियारो, ज्यों पावक कूं समरी।
ज्यूं मछली को नीर पियारो, बिछुरे देखै जमरी॥
साधों के संग हरिगुन गाऊं, ताते जीवन हमरी
'चरनदास' शुकदेव दृढायो, और छोटी सब गमरी॥