सामण की फुहार पड़ैं सै,
लग्या उम्हाया मन मैं ।
सारी कठी हो कै कामणी
झूलण चाली बण मैं॥
कोयल मोर पपीहा बोलैं,
गावै राग मल्हार
नींबां कै निबोंली लागी,
पडैं आम्बां तै रसधार
ठूंठ हरे सो होंदे आवैं,
होया जीवन का संचार
बागां मैं हरियाली छाई
आया तीजां का त्योहार
छाई घोर घटा काली,
होरया मींह बरसण नै
सारी कठी हो कै कामणी
झूलण चाली बण मैं
कर सोलां सिंगार बसंती,
केलो संतरों सूरती
धापो अर भरपाई चाली,
गैल भतेरी मूरती
काले, पीले, लीले दामण,
पहर कै धोली कुरती
रूप ग़ज़ब मारै लसकारें,
डींग मीरग ज्यूं धरती
तन पै जोबन चढ़ता आवै,
माणस मोह ले क्षण मैं
सारी कठी हो कै कामणी
झूलण चाली बण मैं
घोंट्याँ आली ओढी चूंदड़ी
अर माथै बिंदी सार
कड़े छलकडे झांझर न्योरी
पडै पाती की चमकार
कड़ी तोडिये रमझोल बाजरी,
उठै नाड़े की झंकार
नेजू पाटड़ी ले चाली सब,
छिड़ी छोरयाँ मैं तकरार
मुखड़े चमकै ढाल चांद की,
बसगे मन के दर्पण मै
सारी कठी हो कै कामणी
झूलण चाली बण मैं
पींग घाल बड़ के डाले मै,
होई झूलण नै तयार
कोई झूलै कोई रही झूला,
उठै गीतां की गुंजार
नाक तोड़ कै सासू का
रही एक दूजी पै मार
दिनेश करै या अर्ज राम तै,
जियो सबके भरतार
सब पै करियो दया प्रभु
तुम वास करो कण कण मैं
सारी कठी हो कै कामणी
झूलण चाली बण मैं