Last modified on 18 जुलाई 2008, at 02:20

सामना / महेन्द्र भटनागर

पत्थर-पत्थर
जितना पटका
उतना उभरा !


पत्थर-पत्थर
जितना कुचला
उतना उछला !

कीचड़ - कीचड़
जितना धोया
उतना सुथरा !

कालिख - कालिख
जितना साना
जितना पोता
उतना निखरा !
असली सोना
बन कर निखरा !

ज़ंजीरों से
तन को जब - जब
कस कर बाँधा
खुल कर बिखरा
उत्तर - दक्षिण
पूरब - पश्चिम
बह - बह बिखरा !

भारी भरकम
चंचल पारा
बन कर लहरा !

हर खतरे से
जम कर खेला,
वार तुम्हारा
बढ़ कर झेला !