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साम्हूं ओळ / ओम पुरोहित कागद

बादळ दिखता
ताणतो छतर
बरसता कदास।

ताण्यां छतर
हांसै जग
बिना बादळ
रळी पूरण
दीठ में आ
नाचै मन
छम्मर-छम्मर
मोर कथीजूं
साम्हूं ओळ।