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सारथी / केदारनाथ अग्रवाल


मेरे लिए सूरज नहीं सूरज है
पूरब में निकला हुआ,
पच्छिम में डूबा हुआ;
और न ही
कोई एक यात्री है-
आया हुआ, गया हुआ,
आने पर जिसके मुझे हर्ष हुआ,
जाने पर जिसके मुझे शोक हुआ,
बल्कि एक दक्ष कुशल सारथी है

रचनाकाल: संभावित १९५७