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सारा जगत अब ग्राम है / सुधेश

सारा जगत अब ग्राम है
बस, आदमी इक नाम है।

          भाषा कला सब वस्तुएँ
          बस, बेचना ही काम है।

जो वाम दक्षिण-सा लगा
जो दाहिना था वाम है।

            वह रूप हो या प्यार हो
            अब तो सभी कुछ चाम है।

इंसानियत अनमोल थी
हर चीज़ का अब दाम है।

            तब गाँव मानो स्वर्ग था
            अब नरक सारा ग़ाम है।

सब पुण्य लूटो तीर्थ का
बाज़ार चारों धाम है।

             सब कुछ स्वचालित है यहाँ
             कितना बड़ा आराम है।

दिखता कहीं है राम तो
आराम में ही राम है।

             मंज़िल मरुस्थल की नहर
             पग चल रहा अविराम है।