Last modified on 19 अगस्त 2018, at 09:19

सारी रात जगाती है / नासिर काज़मी

सारी रात जगाती है
बीते लम्हों की झांझन

लाल खजूरों ने पहने
ज़र्द बगूलों के कंगन

चलता दरिया, ढलती रात
सन सन करती तेज़ पवन

होंटों पर बरसों की प्यास
आंखों में कोसों की थकन

पहकि बारिश, मैं और तू
ज़र्द पहाड़ों का दामन

प्यासी झीलों और दो चेहरे
दो चेहरे और इक दर्पन

तेरी याद से लड़ता हूँ
देख तो मेरा पागलपन।