अब और न चलने पाएगी परदापोशी,
भंग हुई है गत युग की जड़ता बेहोशी!
सावधान हो जाओ, ओ! जन-पथ के द्रोही,
युग है दलितों का जिसकी बाट सदा जोही!
ललकार रहा है नित धरता मज़बूत क़दम
इंसान नया, नव राह बना, कर दूर वहम!
कंधों पर आज किये नव-रचना भार वहन,
टकरा कर मर्दित दग्ध-विषैला-क्रूर दमन!
निष्फल अभियान विपक्षी व्यूह हुए लुंठित,
कल की आँधी देख रही प्रतिहत राह थकित!
नव-लाली ले उगता लो जनता का सूरज,
‘नया सबेरा’ आज दमामा कहता बज-बज!
मानव के हाथों में सुदृढ़ हथौड़े का बल,
पर्वत की छाती पर चलता जनता का हल!
हरियाली लाएगा, समता विश्वास अमर,
फूटेंगे अंकुर पथरीली बंजर भू पर!
रस का सागर लहराएगा जन-जन के हित,
बरसेगा जीवन कण-कण पर मुक्त असीमित!