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सावधान / भवानीप्रसाद मिश्र

जहाँ-जहाँ
उपस्थित हो तुम

वहाँ-वहाँ
बंजर
कुछ नहीं रहना चाहिए

निराशा का
कोई अंकुर फूटे जिससे
तुम्हें
ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए !