सावन आवन हेरि सखी,
मनभावन आवन चोप विसेखी ।
छाए कहूँ घनआनँद जान,
सम्हारि की ठौर लै भूल न लेखी ॥
बूंदैं लगै, सब अंग दगै,
उलटी गति आपने पापन पेखी ।
पौन सों जागत आगि सुनी ही.
पै पानी सों लागत आँखिन देखी ॥
सावन आवन हेरि सखी,
मनभावन आवन चोप विसेखी ।
छाए कहूँ घनआनँद जान,
सम्हारि की ठौर लै भूल न लेखी ॥
बूंदैं लगै, सब अंग दगै,
उलटी गति आपने पापन पेखी ।
पौन सों जागत आगि सुनी ही.
पै पानी सों लागत आँखिन देखी ॥