Last modified on 30 मार्च 2021, at 22:40

सावन छै मनभावन / मुकेश कुमार यादव

सावन छै मनभावन।
मांटी-कादो बिछावन।
कोठी सानी।
टप-टप चुवै दिनभर पानी।
भींगलै सुखलो जलावन।
सावन छै मनभावन।
फिसिर-फिसिर बूंद गिरै।
मोती चारों ओर झरै।
हरियाली वन-वन फिरै।
लागै बड़ी सुहावन।
सावन छै मनभावन।
बुतरु बच्चा जाय छै पिछड़ी।
माय-बाप से जेनै बिछड़ी।
छपर-छपर खेल करै।
पानी कीचड़ मेल करै।
भेलै रूप लुभावन।
सावन छै मनभावन।
रिमझिम बादल
बरसै पागल
नया-नया नट-खेल करै।
दुखिया घर उखेल करै।
ऐतै जखनी साजन।
सावन छै मनभावन।