सावन मासे मेंहदी रोपाई गइले, भादोहीं दुई-दुई पात, सुनिले कन्हैया,
पिया मोरे जोगी भइले, हमहूँ जोगिनियाँ बनि जाय।।१।।
कुआर ही मासे कुँअरा विदेश के गइले,
नाहीं कुछ कहलो जाइ, सुनिले कन्हैया,
पिया मोरे जोगी भइले, हमहूँ जोगिनियाँ बनि जाय।।२।।
कातिक मासे कहत किताब, ननदी अगहन अग्र स्नेह
पूसहीं मासे देहिया भँवर भइले,
अजहूँ न अइले भइया तोर, सुनिले कन्हैया,
पिया मोर जोगी भइले, हमहूँ जोगिनियाँ बनि जाय।।३।।
माघहीं मासे महान संताप ननदी, फागुन रंग महीने,
चैत मासे फूले बन टेसू, केकरे रंगबों सिर पाग, सुनिले कन्हैया
पिया मोरे जोगी भइले, हमहूँ जोगिनियाँ बनि जाय।।४।।
बइसाखहीं मासे बाँसवाँ कटाइ ननदी,
जेठहीं कुहरत मोर, असाढ़हीं मासे पूगे बरहोमासा,
पूजी गइले मनवा के आस, सुनिले कन्हैया
ऊधो, मोरे जोगी भइले, हमहूँ जोगिनियाँ बनि जाय।।५।।