Last modified on 23 मार्च 2015, at 17:02

सासुरक पहिल फगुआ / शम्भुनाथ मिश्र

मीता रौ मीता की कहियौ!
पहिलुक फगुआकेर ध्यान पाबि,
अछि मोन जाय अपने लजाय,
बिनु बुझने-सुझने की कयलहुँ?
तोरो सबसँ नहि पुछलियौक,
मीता रौ मीता की कहियौ!

चटपट सब देलक बियाह करा,
मासो न पुरल, फागुन अयलै,
ई छलै हमर पहिले फगुआ,
सब जोर-जबरदस्ती कयने
सासुरसँ आबय नित्य फोन,
ओझा छै फगुआ दशामे दिन,
सरहोजि, सारि, आ सार रहय,
कयने अकच्छ, धरि फोनेपर
धुर! एते भेलै अछि फोन कतहु?

दूनू समधिन दोसरे तेसरे
करइत छलैक भरि पोख गप्प
समधिनकेँ समधिन पोटियौने
माइक इच्छा से छलै प्रबल
बौआ सासुर जयबेँ कहिया
कोरपछुआ बेटालेल छलै
सबसँ बेसी माइएक जोर
सासुक सेहो ताहूसँ बढ़ि,
ओझा आबथु, जल्दी आबथु
रेखाकेर सखी-बहिनपासँ
गप्पो नहि कयलनि ओहि बेर
सबकेँ लागल छै मोन एतय
सब पहिनेसँ अछि पूछि रहल
ओझाक अबैया छनि कहिया?
मीता रौ मीता की कहियौ!

दहिबाड़ा संगहि मालपुआ
छागर ठेमाय रखने छलैक
से कहि-कहि कऽ छल मोन केने
सब क्यौ विचलित,
बड़ पैघ समस्या छल सम्मुख
सासुर जयबै तँ करबै की
हम कोना खेलायब फगुआ से
ने बुझै छलहुँ, ने जनै छलहुँ।
बजितो होइछ अछि लाज मुदा
मीता रौ की कहियौ तोरा
हमरा तँ नहि किछु छल फुरैत
हम की करबै, की नहि करबै

छाती से छल धड़कैत
कोना की करय पड़ै छै सासुरमे,
मुन्ना कहने छल रे मीता
सासुरकेर फगुआ स्वर्ग तुल्य
सब टोल पड़ोसक सारि-सारकेर
संगी साथी आबि-आबि कय लगयतौक सब रंग
मुदा नहि झंझट छौ करबाक,
अपन फुचफुच्ची रखिहेँ दाबि,

होइछ बड़ नीक सासुरक फगुआकेर आनन्द
जेना जे देतौ माथपर रंग ढारि
तकरासँ तहिना दुनू गाल लगबाय
प्रेमसँ दुनू गालमे तोहूँ रंग लगाय लिहेँ आनन्द
मोन अपने भऽ जेतौ प्रसन्न
रंगकेर भिन्ने मजा हेतौक
भिन्ने उमंग, भिन्ने तरंग,
नहि कोन रंगमे सराबोर भय डूबि,
स्वयं शृंगार रसक आस्वादनमे होयबेँ बेमत्त।

छल रंग-विरंगक बात मोनमे चारू दिस दौड़ैत,
द्वन्द्वमे पड़ल हमर छल मोन,
मुदा छल एक बात ओझरैल,
छलहुँ ने बूझि रहल जे की करबै की नहि करबै?
सब बात बूझि, सब बात सोचि
भितरे भीतर गुदगुदी लगै छल
छलहुँ पड़ल धरि प्रबल सोचमे की कहियौ?
रौ मीता तोरा की कहियौ

सोचक कारण छल रौ मीता
नहि बूझल छल ई बात, रंग हम ककरा जाय लगैब?
मोनमे नहि छल बात अँटैत
करब की नहि छल किच्छु फुरैत,
छली मामी धरि बड़ मानैत,
पुछलियनि तेँ हुनकेसँ जाय
कहू अय मामी! एकटा बात,
जखन फगुआमे सासुर जैब,
रंग ककरा हम जाय लगैब?
छलहुँ मामीसँ गप्प करैत,
कतहुसँ मामा छला सुनैत,

किन्तु नहि बूझल से हम बात
जरुरी गप्प एक करबाक,
बजौलनि मामा अपने आबि,
बहिनकेर हाल-चाल सब बूझि,
स्वयं अपने बाजय लगलाह,
विवाहक बाद अहाँकेर भागिन ई तँ
पहिले फगुआ हैत?
अछि शास्त्र केने निर्धारण
के ककरा संग कोना खेलैत
चलै छै, मिथिलामे ई रीति
अहाँ सासुर धरि निश्चित जाइ
रंग सासुक संग प्रथम खेलाइ
बादमे सारि आकि सरहोजि।

पेटमे फक दऽ आयल प्राण
एहिसँ स्वयं छलहुँ अनजान,
मुदा की कहियौ मोनक बात
हृदयकेर भीतर बहल बसात
स्वयं उल्लासक सागरमे डूबल
रंगक झोरी अलगे रखने,
सब रंगक रंग-अबीर लेने
हम सजि धजि कऽ

सम्मते साँझमे पहुँचि गेलहुँ,
भोरेसँ हम तत्परे छलहुँ
मामाक बातकेँ ध्यान राखि
हम बाट अपन जोहय लगलहुँ,
कोबरे घरमे सन्दूक छलै
तै मे छल राखल सुच्चा घी,
मीता रौ मीता की कहियौ!

अछि मोन पड़ैत जखन ओ क्षण
लाजेँ कठौत भऽ जाइत छी,
भोरेसँ सासु छलीह व्यस्त
घोरल मैदामे हाथ छलनि बोरल हुनकर
अयली तखने घी लेबालय सन्दूकक लग
हम रंगक पुड़िया हाथ झाड़ि
पहिनेसँ छलहुँ सचेष्ट तथा साकांक्ष अपन,
दू बुन्द पानि दय रगड़ि
दुनूटा हाथ देलहुँ मुँहमे लगाय,
बजली अपने-ओझा! ओझा!
ई की कयलनि?
छनि ज्ञान केहन, नहि बूझि रहल,
हम टनकि कहल-
माँ जी! माँ जी नहि एना करथु,
नहि सुनबनि सब किछु बुझले अछि
अप्पन मामा छोटका मामा सब सिखा देलनि
हिनका नहि किछु सिखबय पड़तनि
मीता रौ मीता की कहियौ!

अपने लगैछ बड़ हँसी
पड़ै अछि मोन जखन
हम आँखि मूनि कऽ देलहुँ लगा
दूनू कपोल भरि पोख रंग,
जाबत सब बूझय आ दौड़य,
हम हाथ दुनू नीचाँ कयने
सबकेँ कहि देलियनि फगुआ केर विधि कयल पूर्ण
नहि रंग लगाबक अछि ककरो।
मामाजे स्वयं छला कहने से भेल पूर
ओ छली सन्न, हम अति प्रसन्न
मीता रौ मीता की कहियौ।

मामापर छल विश्वास तते
जे नहि बुझलहुँ ठ्ठठा करता
चंचल मतिमे ई नहि जानल जे
हमर सासु समधिन होयथिन,
हम रंग लगा भऽ गेलहुँ चुप्प
सब चुप-चुप कऽ रहि गेल,
किन्तु विस्तृत हाल अपन मामीकेँ
सबटा आबि सुना देलियनि जे
शुद्धा भागिन सभक बीचमे से बुड़िबक बनि गेल
तखन मामी बजलीह हँसैत-
जाउ! एतबो नहि बुझलहुँ बात?
अस्तु, चिन्ताक न कोनो बात,
किन्तु हम की कहियौ!
नहि बिसराइत अछि ओ फगुआ,
अप्पन फगुआ,
सासुरकेर पहिल-पहिल फगुआ
एखनहुँ धरि ओहिना मोने अछि।