Last modified on 19 जुलाई 2020, at 23:41

साहिल नहीं किनारा / कैलाश झा 'किंकर'

साहिल नहीं किनारा
दरिया में तेज धारा।

दुनिया अदीब की है
स्वागत सदा तुम्हारा।

बद-अक्स से है दूरी
मैं स्याह का हूँ मारा।

खुशरंग ख़ूब दुनिया
नज़रों का है नज़ारा।

हमने तो कर दिया था
पहले ही इक इशारा।

मुश्किल में आस्था है
कैसै हो अब गुज़ारा।

कविता कि पालकी को
देना ज़रा सहारा।

स्वर से मिलेगा स्वर भी
आकर मिलो दुबारा।