राग बागीश्वरी
सिद्धयोगी सर्वकामवर कामजित,
सर्वपार्श्वमुख विक्रमी धन्वी अजित।
जयति घनघोर संसारवनशूलहर,
नमस्कृत गरलधर तीर्थदेव शुभंकर,
स्वरूप गान्धार, ऋक्साम, पर-अपर,
महाकर्ता, महागीत तुलनारहित।
जयति सामगायन शोकतापनाशन,
परम मन्त्र पावन, परम सिद्धि साधन,
महामेघवासी, विषम बन्धमोचन,
दिव्य बोधायतन सर्वलोचन ज्वलित।
आदि के भी आदि, वेद वेद के भी,
अन्त के भी अन्त, देव देव के भी,
अर्थ के भी अर्थ, भेद भेद के भी,
जयति मंगलमूल भुवनभावन विदित।