क्षितिज के मौन वक्र में
दहका नहीं अभी
सिन्दूरी सड़कों का यात्री
फिर भी ओस-अटी धूप में
बस्तों के पहाड़ उठाए
चलते हैं
करोड़ों कमज़ोर बच्चे
आज :
भागम-भाग के शहर को अलविदा कह
जंगल के आषाढ़ॆए पत्तों से बतिया
मलहार के रिमझिम स्वरों में
भोजते-सीजते
अपना आदिम मनुष्य
तलाशा है हमने।