कल -कल बहती सरिता की जब
मीठी इतनी जल धारा।
सिन्धु बताओ भला तुम्हारा
फिर क्यों इतना जल खारा।
झरनें बरखा और सभी ने
मिलकर तुम्हें सजाया है !
न्यौछावर कर नेह असीमित
प्रीति गीत ही गाया है !
किया इन्होंने खुद को अर्पण
सब कुछ तुम पर है वारा।
सिन्धु बताओ भला तुम्हारा
फिर क्यों इतना जल खारा।
लहरों से ले धाराओं तक
पल-पल स्नेह जताती हैं !
वर्षा की बूंदें भी आकर
मुस्काती मिल जाती हैं !
फिर भी घोर गर्जना करते
थर्राते तुम जग सारा।
सिन्धु बताओ भला तुम्हारा
फिर क्यों इतना जल खारा।
हीरे मोती नवरत्नों से
भरे हुए हो मान लिया !
तुम विशाल हो तुम महान हो
जलधि नाम है जान लिया !
किन्तु पथिक घनघोर प्यास से
तट पर ही जीवन सारा।
सिन्धु बताओ भला तुम्हारा
फिर क्यों इतना जल खारा।