सिर नहीं-
गुलाब तोड़े हैं मैंने
क्योंकि मैं
सिपाही हूँ-
बाग में बगावत का खतरा है
आग से बचाना है
भीड़ को मिटाना है
रचनाकाल: ०४-०४-१९७०
सिर नहीं-
गुलाब तोड़े हैं मैंने
क्योंकि मैं
सिपाही हूँ-
बाग में बगावत का खतरा है
आग से बचाना है
भीड़ को मिटाना है
रचनाकाल: ०४-०४-१९७०