बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सियाजू की डलिया खूब सजइयौ।
हरे बाँस की डलिया मँगइयौ हरदी सें टिकवइयौ।
सियाजू की डलिया...
मौन रये गूजालुचई मैंदा की रूच रूच मोहरें लगवइयौ,
अरे रूच रूच मोहरें लगवइयौ। सिया जू की डलिया
आज सियाजू जा रई सासरें अरे सब हिल मिल जइयौ
सियाजू की डलिया...
मात सुनैना आँचर सँवारे अरे आँखन के पलक रखियौ।
सियाजू की डलिया...
जो कछु गलती होवै इनसें अरे धीरे सें समझइयौ।
सियाजू की डलिया...
डोला पालकी द्वारे पै आ गये अरे मैया छतिया लगइयौ।
सियाजू की डलिया...
हाथ पकड़ डोला में धर दई अरे वीरन कंधा लगइयौ।
सियाजू की डलिया...
जो कोऊ सीता की गावै विदाई अरे मन वांछित फल पइयौ।
सियाजू की डलिया खूब सजइयौ।