हे राम
जय श्री राम जय श्री राम
जय घोष तुम्हारा चहुं ओर
दिखलाई नहीं देते हो फिर क्यों
सीता सम्मुख वहीं प्रश्न है
जिनके उत्तर अद्यतन शेष
तुमने तो राम पाषाण बनी
अहिल्या को संवेदना का स्पर्श दिया
शबरी के बेर चख उसकी
दलित हीनता को तोड़ दिया
स्त्री गरिमा के पक्षधर
तुम ही थे ना राम जिसने
तारा, रूमा, सुलक्षणा का ही नहीं
शत्रु -पत्नी मदोदरी के भी सतीत्व को मान दिया
तुम ही थे ना राम
जिसने तड़का और सूर्पनखा के
अमर्यादित व्यवहार का
निसंदेह निषेध किया
राम जिसने जनकसुता की
हर इच्छा का सम्मान किया
अंतर्यामी अवतारी ने
स्वर्ण हिरण की पीछा किया
तुम ही तो थे राम
जिसने सीता की मुक्ति को
लांघे थे सुदूर समुद्र
सीता के सम्मान हरण पे
दासाशीस का संहार किया
तुम ही तो थे राम जिसने
सतीत्व साधे
लंका से लौटी सीता को
अंगारों पर चलने का आदेश दिया
राम कहो तो तुमने तो
अक्षुण्य सतीत्व स्वीकार किया
इतने सतही आरोपों पर
तुमने क्यों कर विश्वास किया
क्यों अपनी मर्यादा चुन ली
उसको पुनः वनवास दिया
तुम ही थे ना राम
जिसकी आज्ञा से निर्दोषी सीता बारम्बार
बिना किसी अपराध देती रही अग्निपरीक्षा
अर्धांगिनी की पीड़ा ना देख सके राम
क्या तुम सिर्फ राजा थे?
प्रतिउत्तर की आकांक्षी
शिरोधार्य करती गई आदेश
हर बार चली अंगारों पर
तुम को पाने की आशा में
कातर हिरणी सी ताक रही है
रत्न जड़ित सिंहासन वो
राम सीता तो सहर्ष बनी थी
वन वास में तुम्हारी अनुगामी
सीता ने त्यागे थे सब वैभव
साथ तुम्हारे रहने को
तुमने क्यों नहीं त्यागा अखंड
पर सीता के बिना मिला अपूर्ण राज्य
तुम तो भिज्ञ थे सत्य से
कृतज्ञ थे सीता के सुकृत्य से
राज धर्म की विवश मर्यादा
अग्नि में चलती रही सीता
और जलते रहे सीता के राम
अब राम स्नेही कहते हैं
सीता के दुख के सहभागी
तुम्हें ज्ञात थे उसके संकल्प
राजसी वैभव का मोह कहां था
वनवासी राम की सहगामी को
राम प्रेम में अनुरक्त हृदय को
राम विरह कब स्वीकृत हुआ
असहनीय पीड़ा सुता की देख
धरती हृदय भी विदीर्ण हुआ
प्रतीक्षित नयनों में
अनुत्तरित प्रश्न मौन रहे
समा गई राम की प्रिया
संग विरह ले राम का
सिंहासन पर राम राज्य में बैठी
राजा की मर्यादा
आदर्श राम का राज है राजा हैं पुरुषोत्तम श्री राम
राम तुम्हें क्या चुभी नहीं
सीता रही अनुपस्थित
नवयुग के अवतारी बन
चेतना का विस्तार करो राम
धरती के नरपुंजो को तुम
थोड़ा सा तो राम बना दो
दण्ड ना भोगे निरपराधी कोई सीता
नारी को वो मान दिला दो
आदर्श अधूरा राम राज्य का
सीता ही दंडित हो हर बार
उसकी पीड़ा, उसकी मर्यादा
उसके अधिकारों का मान बिना
क्यों उसकी ही मर्यादा
फिर प्रश्न चिन्हों से घिरी रहे
आदर्श नहीं है राम राज्य भी
गर निर्वासित सीता भटके जंगल में
सुनो राम सीता की वाणी
सीता की सहभागिता से
नए राज्य का नींव डाल दो
राम राज्य की जगह इस बार
राम तुम
सियाराम राज्य स्थापन कर दो