परम्परागत-कलुषित
निहित स्वार्थवश
निर्मित मकड़जाल
तुम्हारी शक्ति और
धर्म का अवलम्ब से बढ़ता रहा
अन्धविश्वासों का आश्रय ले
उसकी शक्ति पली-पुसी बढ़ी
शोषण का एक नायाब तरीक़ा चलता रहा
सदियों-सदियों तक
पलती रही सुख-सुविधाओं में
पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ--
क्योकि वंचित कर दिया था तुमने
करोड़ों-करोड़ दलितों को
काले आखर से—
जो है विकास का मूलाधार
तुम्हारे ये अभिजात्य हथकंडे
तुम्हारी वे बाज़ीगरी
निश्चित ही सराहनीय है
अनुकरणीय है—
मीठे ज़हर-सा लुभावना है
क्रूरता-भरा तुम्हारा कुत्सित—
इतिहास
गन्दी मानसिकताओं से उसाँसते
तुम्हारे एहसास स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने चाहिए
तुम्हारे ग्रंथों में
वैसे भी तो
तुम्हीं ने दिये हैं भारत को
जयचन्द
तुमने ही तो खड़े किये हैं
द्रोणाचार्य—
और अर्जुन जैसे धनुर्धर
तुम्हारी ही—
सुनियोजित व्यवस्था के षड्यन्त्र के तहत
कटते रहे हैं हज़ारों-हज़ार अँगूठे
एकनिष्ठ दक्ष एकलव्य के
पन्ना धाय के बेटे क़त्ल होते रहे हैं।