मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सिया हे वरण कएल, सब हे मुदित भेल
छूटि गेल मिथिला धाम
केये जनक बगियामे गौरी के पुजतैक
सखि संगे तोड़त के गुलाब
केये धनुषा के सब दिन पुजतैक
चलि भेलि मैथिली ललाम
सखि सभ हे मुदित भेली, विधि सभ लिखि देल
कन्त भेला सुन्दर श्रीराम