इतनी बारीक लकीरें थीं भीतर
कि दिखती भी नहीं थीं
मैंने लगभग कोरे काग़ज़ पर
लिखी समूचे जीवन में
सिर्फ़ एक कविता
जीवन से बड़ी।
इतनी बारीक लकीरें थीं भीतर
कि दिखती भी नहीं थीं
मैंने लगभग कोरे काग़ज़ पर
लिखी समूचे जीवन में
सिर्फ़ एक कविता
जीवन से बड़ी।