उस रोज तुम जब नज़र फेर कर गयी थी
सांसें भी सीने तक आने में बहुत देर कर रही थी
ये कोई ज़हनी रुसवाई नहीं थी मेरी जान
न ये कुछ लम्हात की वक़्ती जुदाई थी
हम अख़लाक़ की जर्द चादरों में लिपटे बदन थे
हमारी रूहें तड़प तड़प कर बदन से खुला मांगती रही
मगर हम ज़माने के डर से मरने से डरते हुए जीते गए
हमारा घायल दिल ज़िस्म के भीतर सड़ता रहा
दुख हमारी नसों में ख़ून बन बन बहता रहा
और तुम्हारा प्यार..... तुम्हारा प्यार,
बोझिल शामों में उदास गीत सा बजता रहा
जिसे जितना सुना, उतना आंखें बहती रहीं,
जितना आंखें रोई उतनी दफा फिर गीत सुनता रहा..
तुम हिचकियों से रो लेने के बाद
सुबकियों में आई वो आखिरी सिसकी थे
जो हमें तीन रातों के रतजगों के बाद कहीं
नींद के आगोश में ले जा सुलाती है कभी
मैं ज़िन्दगी से हारा था साहेबां
मुहब्बत का मारा था जानेजां
मेरा मन था पंखें से टकराई
जमीन पर पड़ी साँसों के लिए लड़ी
वो एक नन्हीं... बेसुध... चिड़िया
जिसे तुम दे सकते थे सिर्फ
सूखते कंठ को तर करने लायक
दो अंजुरी भर पानी तो शायद
लेकिन लाख चाहते तो भी
वापस न दे सकते थे प्राण कभी
मरना मेरी नियति था
मैं मरूँगा दोस्त...
जितनी दफा जाओगी, उतनी दफा मरूँगा
जितनी दफा पूछोगी, उतनी दफा कहूंगा
कहूंगा आखिरी सांस तक ये सत्य बारम्बार
मेरे हॄदय में गति दे सकता था कोई अगर
तो वो था सिर्फ तुम्हारा प्यार,
..सिर्फ तुम्हारा प्यार...