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सिर के अन्दर / केदारनाथ अग्रवाल




सिर के अन्दर

शहर पिट गया है

पेट के अन्दर

पुरूष पिट गया है

पाँव हैं

कि पहाड़ के तले दबे हैं

हाथ हैं

कि क़ैद काट रहे हैं ।


(रचनाकाल : 11.03.1968)