हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सिर पै बंटा टोकणी
मैं तो कूएं की पणिहार री
रस्ते में सासड़ फेंटगी
तेरे मरिओ नोंओं बीर री
तूं किस नै खंदाई एकली
तेरी घर मैं बूझूं बात री
तन्ने गाल कसूती दे दई
कूएं पै दोघड़ तार के री
मैं तो चारूं तरफ लखाय कै री
मन्ने जान कूएं मैं झोकदी
काढ़े देवर जेठ री
मेरा टस टस रोवे भरतार री
तन्ने नार कसूती सोचली
पढ़ रही सात जमात री
बुरजी पै लिख दिया नाम री
सासड़ कै बोल पै ढै पड़ी