बेजोड़ में
झलक रहा है
सिलसिले का चेहरा
जब कि
बेजोड़ खुद क्या है
सिवाय
सिलसिले की एक कड़ी के!
इस तरह होता है स्थापित
महत्व
परम्परा का।
बेजोड़ में
झलक रहा है
सिलसिले का चेहरा
जब कि
बेजोड़ खुद क्या है
सिवाय
सिलसिले की एक कड़ी के!
इस तरह होता है स्थापित
महत्व
परम्परा का।