मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सीकिया<ref>सींक</ref> चीरिए चीरिए<ref>चीर-चीरकर</ref> बँगला छवावल।
ठोपे ठोपे<ref>बूँद-बूँद</ref> चुअहे<ref>चूता है</ref> गुलाब, से ठोपे ठोपे॥1॥
सेहो<ref>उसी</ref> अरक<ref>अर्क, रस</ref> के पगड़ी रँगाबल।
पेन्हें जी होरिलवा के बाप, उनखा<ref>उनको</ref> के होरिला भयले॥2॥
हम त एहो परभु, गरभ से बेयाकुल।
तूँ चढ़ि पलँगा बइठबऽ मन मार॥3॥
तूँ त चलिए जयबऽ<ref>जाओगे</ref> राजा कचहरिआ<ref>कचहरी</ref>।
हम हीं बुझब, सभ लोग॥4॥
शब्दार्थ
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