ओ पीड़ा की राजकुमारी! मेरे सपनों में फिर आना
प्यासी नील झील नयनों की, भरी बदरिया-सी झर जाना
ओ पीड़ा की राजकुमारी!...
तुम तो बस बिजली-सी चमकी
प्रिय-स्मिति-सी कौंधी दमकी
किन्तु, उसी छोटे-से क्षण में
मुझको निधियाँ मिलीं भुवन की
क्षणिक छवि-परस का अब भी है मन-दर्पण पर बिम्ब सुहाना
ओ पीड़ा की राजकुमारी!...
अश्रु वसन में लिपटी-सिमटी
तुम कितनी सुन्दर लगती हो
सो जाता जग, पर तुम शत-शत-
डबडब आँखों में जगती हो
सतरंगी अधबुने कफन में बुन-बुन दुख का ताना-बाना
ओ पीड़ा की राजकुमारी!...
तुमसे अतिशय बल मिलता है
दुर्दिन को सम्बल मिलता है
उड़ जाती चिन्ता भौंरों-सी
प्राणों का शतदल खिलता है
क्षण भर के ही दरस-परस से सीख गया आँसू मुस्काना
ओ पीड़ा की राजकुमारी!...
जनम-जनम की प्यास टीस की
एक तुम्हीं से बुझ पाती है
मेरे जीवन के दियले की-
उकस-उकस जाती बाती है
आने वाले जन्मों के सपनों को भी यों ही दुलराना
ओ पीड़ा की राजकुमारी!...
-14 अगस्त, 1976