सीढ़ी
सीढ़ी........
पुरानी पड़ चुकी
गोलाईदार डंडों की नस-नस
उभरी......उखड़ी.....सी
सपाट दीवारों (सहारों?) पर टिका
एक से दूसरे तल जाते
पाँवों की हड़बड़ी।
आँखें
कभी ऊपर कभी नीचे
टिकाए लोग
बरसों बरस मीलों मापते
चुक जाएँगे।
बदरंग बाँस की सीढ़ी!
आवाज़ तो दो,
चेताओ तो.......!
चरमराओ तो.......!!!