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सीता निष्कासन / अरविन्द कुमार

एक समय जब उन्होंने सीता निष्कासन कविता लिखी थी तो पूरे देश में आग लग गई थी। सरिता पत्रिका जिस में यह कविता छपी थी देश भर में जलाई गई। भारी विरोध हुआ। सरिता के संपादक विश्वनाथ और अरविन्द कुमार दसियों दिन तक सरिता दफ्तर से बाहर नहीं निकले। दंगाई बाहर तेजाब लिए खड़े थे। सीता निष्कासन को लेकर मुकदमे भी हुए और आंदोलन भी। अरविन्द कुमार ने अपने लिखे पर माफी नहीं मांगी। न अदालत से, न समाज से। उन्होंने कुछ गलत नहीं लिखा था। एक पुरुष अपनी पत्नी पर कितना संदेह कर सकता है, सीता निष्कासन में राम का सीता के प्रति वही संदेह वर्णित था तो इस में गलत क्या था? फिर इस के सूत्र बाल्मीकी रामायण में पहले से मौजूद थे। जिस दिल्ली प्रेस की पत्रिका सरिता में छपी सीता निष्कासन कविता से वह चर्चा के शिखर पर आए उसी दिल्ली प्रेस में वह बाल श्रमिक रहे।