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सुंदर सँवरी नार / प्रेमलता त्रिपाठी

सहज सादगी सुंदर सँवरी नार ।
मोहक-मानस मंजुल-मुख शृंगार ।

सुमुखि सलोनी सजनी तू सौगात,
लहर लास्य ले अधर गुलाबी सार ।

तिरछी भौंहे कजरारी अनजान,
'मुग्धे' ! तेरे नयना लगें कटार ।

कंचन-काया मदमाती-मुस्कान,
माथे-बेंदी माँग-सजा गल-हार ।

नथ नकबेसर झूलत झुमका गाल,
कंगन-चूड़ी हिना-सजी अविकार ।

मनहर जस चंद्रिका लजाये रात,
मदन-मोहिनी गजब करे अभिसार ।

प्रेम नयन लगती जैसे नव छंद,
लगे चुलबुली दर्पण हस्त निहार ।