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सुइया हेराय गेलोॅ खोजी दे / अमरेन्द्र

‘‘सुइया हेराय गेलोॅ खोजी दे’’

‘‘केना हेराय गेलोॅॅ दादी गे
भौजी नै छौ तोरोॅ सीधी गे
सुइया लेॅ ठुनकोॅ चलैतौ गे
भय्यो बचाय लेॅ नै ऐतौ गे
बंदूक लेलोॅ जेहनोॅॅ फौजी के
होने रबैया छौ भौजी के
बड्डी मनाय छेलाँ देवी सेॅ
‘दुरगा माय, दुरगा माय भौजी दे’
सुइया हेराय गेलोॅ खोजी दे !’’

देखले नी माँगी केॅ दीदी गे
तोहें बड़ी ही छै सीधी गे
अच्छा निभाय लेॅ ई जानी ले
दिले नै सब कुछ छै, मानी ले
तोहरौ जों होतियो झलारोॅ गे
रैथिहैं की हेने उघारोॅ गे
इज्जत सें रहै लेॅ देवी सेॅ
माँगे-मनाबें कि रोजी दे।
सुइया हेराय गेलोॅ खोजी दे ।’’