पर्वत के कंधे पर सूरज की लाश
चुभ गई सुई थके जोड़ों के पास
जितना तय किया सफ़र
धरती पर फैला कर
बाक़ी पथ ओढ़ सो गए
जैसे बीमार हो गए ।
झील हुआ सिन्धु-सा गगन
बढ़ पोर-पोर का वज़न
जाने किस बुझे मंत्र से
बाँध गई बाँसुरी, थकन
गीतों को दुहरा कर
सिरहाना-सा पा कर
काई-सा सिमट गया स्याही का व्यास
सुई चुभी जोड़ों के पास।