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सुकृत / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

सुकृत (जीवन दर्शन)

सुख बनकर आते हैं
सदा सुकृत ही अपने,
दुख बन कर पीड़ित करते
दुष्कृत ही अपने,
परम सत्य है यह संसार
जहां माथे पर गिरते हैं
अपने ही पाप
सदा गर्जन कर, शुचि करते
जीवन केा अपने ही सुचि सपने
सुख बनकर आते हैं
सदा सुकृत ही अपने।
(सुकृत कविता का अंश)